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मात्र साढ़े नौ साल में प्रथम वर्ष में 21 करोड़ के व्यवसाय से लगभग 5000 करोड़ का बिजनेस और इस बिजनेस से जुड़े लगभग एक करोड़ लोग, यह आंकड़े मात्र नहीं है और न ही परीकथा है। यह है एक स्वप्नदृष्टा की स्वप्न देखने के हौसले और उसे हकीकत में तब्दील करने की क्षमता का उदाहरण।
16 सितंबर 1957 को अजमेर जिले के नान्दसी गांव में जन्मे छह भाइयों में तीसरे तिलोकचंद छाबड़ा ने प्रारंभिक शिक्षा नांदसी से प्राप्त करने के पश्चात् हायर सेकेण्ड़री केकड़ी से पूरी की और जयपुर से बी.कॉम. स्नातक होने के बाद 1977 में केकड़ी में ही कपड़ों का व्यापार प्रारंभ किया जो कि 21 वर्षों तक सतत सफलतापूर्वक चलता रहा किन्तु समाज का फायदा और व्यापार में समाज की भागीदारी को लेकर मन में उधेड़बुन चलती रही। इतने बड़े भारतीय बाजार में जहां संपूर्ण अर्थव्यवस्था, राजनीति और सारा इंफ्रास्ट्रक्चर सिर्फ और सिर्फ उपभोक्ता की ताकत पर ही आधारित हो। विश्व की बड़ी से बड़ी महाशक्तियां जिस उपभोक्ता शक्ति की ओर टकटकी लगाये बैठी हो, उस उपभोक्ता की ताकत का इस्तेमाल उसी के फायदे के लिये करने का अभिनव विचार ने मूर्त रूप लिया और 1999 में प्रारंभ हुआ आर.सी.एम. व्यवसाय। दूरदृष्टि और उपभोक्ता की ताकत पर पकड़ का ही परिणाम था कि प्रथम वर्ष में आर.सी.एम. ने 21 करोड़ का व्यवसाय किया। हालांकि व्यवसाय प्रारंभ करने के प्रथम माह में तो रिस्पांस बहुत अच्छा मिला किंतु दूसरे माह में अचानक ग्रोथ रूक गयी किन्तु ऑल इज वेल का इससे अच्छा संदर्भ नहीं मिल सकता कि उन्होंने हार नहीं मानी और बाजार में
टिके रहने का निर्णय लिया। ’’गुड बिगिनिंग इज हाफ डन’’ की कहावत का चरितार्थ करते हुए टी.सी. छाबड़ा ने अगले दस माह में 21 करोड़ का रिकॉर्ड बिजनेस कायम किया। यह तो शुरूआत भर थी, मन में तो भागीरथी प्रयास कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस कंसेप्ट को पहुंचा कर स्वविकास की कड़ी से जोड़ना था और नतीजा सबके सामने है, मात्र साढ़े नौ वर्षों में 21 करोड़ से 5000 करोड़ और एक करोड़ से ज्यादा बिजनेस पार्टनर, एक पेंट पीस से अनगिनत प्रोडक्ट और उनमें से भी ज्यादातर स्वनिर्मित। किसी ने सही ही कहा है ’’सफलता उन्हीं को मिलती है जिनमें सपने देखने की हिम्मत है।’’ व्यवसाय तो अपनी जगह है किन्तु कम समय में इतनी बड़ी सफलता बिना जीवन मूल्यों के नहीं मिल सकती है। कहते हैं ’’ अच्छे कार्य की शुरूआत पहले अपने घर से ही होनी चाहिये। बहुमुखी प्रतिभा के धनी तिलोक चंद छाबड़ा ने मूल्यों को जीवन में उतारने के लिये जन-जन के बीच रहकर खुद व्यावहारिक रूप से कार्य किया है। उन्होंने अपना जीवन इस उद्देश्य के लिये समर्पित कर दिया कि लोगों को ऐसी राह पर लाया जाए कि वे जीवन में हर तरह से सफल भी हों और उनके जीवन में सुख, शांति, संतुष्टि, मुल्य और सच्चे आनंद का वास हो। वे चाहते हैं कि लोग आर्थिक रूप से भी संपन्न हों और आध्यात्मिक शक्ति से भी पूर्ण हों। उनका यह स्पष्ट मानना है कि इंसान बहुत ही अद्भूत और असीम शक्तियों को लेकर इस धरती पर जन्म लेता है। वे स्वयं इसका निष्णांत उदाहरण हैं। व्यापार की दुश्वारियों, सफलता-असफलता की डूबती-उभरती लहरों के बीच भी वे अपनी इन शक्तियों का प्रयोग समाज के फायदे के लिये करने से नहीं चुके और इंसान की असीम शक्तियों के रहस्य को उजागर करती ’’और जीवन एक खोज’’ और ’’शक्ति का खजाना’’ नामक दो बेहतरीन पुस्तकों की रचना कर ड़ाली जिनकी बिक्री पूर्व के कई मानकों को ध्वस्त करती जा रही है। यही नहीं, गीतकार, संगीतकार जैसे गुणों से ओतप्रोत टी.सी. छाबड़ा ने आर.सी.एम. पर तीन एलबम भी बनाए हैं जिसका उद्देश्य लोगों को प्रेरित करना रहा।
अपने पिता के संस्कारों और सादगीपूर्ण जीवन को अपने जीवन का आधार मानने और उसे पूर्ण रूप से अंगीकार करने वाले तिलोकचंद छाबड़ा की दोनों संतानें, एक पुत्र और एक पुत्री, भी इसी व्यवसाय से जुड़े है। पत्नी की सपोर्ट को भी वह अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।
वर्तमान आर्थिक हालात पर चर्चा करते हुए टी.सी. छाबड़ा का कहना है कि मंदी तो कभी थी ही नहीं, यह तो एक धारणा मात्र थी और मेरा प्रयास और सफलता का मूल मंत्र लोगों को बंधी-बंधायी धारणा से बाहर निकालकर इंसान की सोच को खुले आकाश में लाना है। शायद इसी वजह से तथाकथित मंदी के दौर में भी आर.सी.एम. व्यवसाय निर्बाध चलता रहा और पूरी तीव्रता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जा रहा है। भारतीय उपभोक्ता शक्ति के विशाल महासागर में एक समृद्ध द्वीप का निर्माण कर चुके टी.सी. छाबड़ा युवाओं को यही मैसेज देते हैं कि पूरी ईमानदारी और संकल्प के साथ कार्य करंे और अपने लक्ष्य की दिशा में जुटे रहें तो सफलता निश्चित कदम चूमती है। शायद उस डाक टिकिट की तरह जो अपने निर्धारित पते पर पहुंचने तक
लिफाफे पर जमा रहता है।